
मृत्युदंड स्वीकार है राजन ! किन्तु अर्चना नही करूंगा। चरण वंदना नही करूंगा !
तुलसी ,सूर ,कबीरदास के घर का मैं छोटा बालक हूं।
दिनकर ,धूमिल ,सर्वेश्वर के आचरणों का प्रतिपालक हूं।
सच को सच कहने का साहस मैने इन पुरखों से सीखा।
सही गलत दो पहलू हैं फिर कैसे कह दूं एक सरीखा ?
चंद स्वर्ण सिक्कों के खातिर
मलिन भावना नही करूंगा।
चरण वंदना नही करूंगा !
माना कुछ कवियों ने तुम पर केवल अपनी कलम चलाई।
तुम्हें ईश्वर माने अपना लिखे चालीसा ,गीत , रुबाई।
ऐसे वैसे करतब करके अपना जीवन काट रहे वो।
पद्मश्री की अभिलाषा में चरण पादुका चाट रहे जो।
मै ऐसे अपकृत्य की किंचित
कभी कल्पना नही करूंगा।
चरण वंदना नही करूंगा !
राजन ! सम्मुख आपके मुझको कोई आसन नही चाहिए।
औ दरबारी कवियों वाला मुझको लांछन नही चाहिए।
चाटुकारिता करके सुखमय भोग नही कर सकता हूं मै।
शीश पांव पर रखने वाला योग नही कर सकता हूं मै।
जिससे लज्जित कृत हो ऐसी
कभी सर्जना नही करूंगा।
चरण वंदना नही करूंगा !
© Sameer Tiwari

Author: SPP BHARAT NEWS
