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सिर्फ दशहरा के दिन खुलते हैं इस मंदिर के कपाट, लंकापति रावण की होती है पूजा

सिर्फ दशहरा के दिन खुलते हैं इस मंदिर के कपाट, लंकापति रावण की होती है पूजा

हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन भगवान राम नें रावण का वध कर माता सीता को रावण की कैद से मुक्त किया था। इसी कारण दशहरा के दिन रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतलों का दहन किया जाता है। इन तीनों के पुतलों का दहन करने को अधर्म, अहंकार और बुराई के अंत का प्रतीक माना जाता है। दशहरा के दिन जहां एक तरफ तो जगह जगह रावण के पुतलों को जलाया जाता है, वहीं दूसरी तरफ भारत के कानपुर में रावण का एक ऐसा मंदिर है जिसमें दशहरा के दिन सुबह रावण की पूजा की जाती है।

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में रावण का एक अनोखा मंदिर है। यह मंदिर कानपुर के खास बाज़ार, शिवाला, पटकापुर में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सन 1868 में महाराज गुरु प्रसाद नें करवाया था। देश भर में जहां दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है, वहीं इस मंदिर में दशहरे के दिन सुबह सुबह रावण की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है।

रावण का यह अनोखा मंदिर साल में सिर्फ एक बार दशहरे के दिन ही खुलता है। रावण की पूजा करने के पीछे स्थानीय निवासियों का मानना है कि रावण एक महान विद्वान पंडित और सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न था। उसकी पूजा उसके इन्हीं गुणों के कारण की जाती है। यहां रावण को ज्ञान और शक्ति का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। रावण इतना बड़ा विद्वान और ज्ञानी था कि उसके अंत समय में स्वयं भगवान राम नें अपने भाई लक्ष्मण को रावण से ज्ञान लेनें के लिए रावण के पास भेजा था।

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Author: SPP BHARAT NEWS

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