
मानव जनसंख्या वृद्धि और परिस्थिति : एक अपरिहार्य संकट की ओर बढ़ते कदम
प्रस्तावना:
आज के समय में मानव जनसंख्या वृद्धि एक गंभीर पारिस्थितिकीय संकट का रूप धारण कर चुकी है। यदि हम पारिस्थितिकी के सिद्धांतों को समझें, तो यह स्पष्ट होता है कि किसी क्षेत्र की ‘Carrying Capacity’ (वहन क्षमता) के बाहर अगर किसी जीव की जनसंख्या बढ़ती है, तो यह संसाधनों की कमी और संघर्ष का कारण बनती है। यह संघर्ष तब एक ‘Catastrophe’ (प्रलय) का रूप ले सकता है। खासकर भारत जैसे देशों में, जहां जनसंख्या वृद्धि बेहद तेज़ी से हो रही है, इस संकट का सामना करने के लिए हमें पारिस्थितिकी, समाजशास्त्र और आर्थिक दृष्टिकोण से एक व्यापक दृष्टि की आवश्यकता है।
‘Carrying Capacity’ और पारिस्थितिकी का सिद्धांत:
‘Carrying Capacity’ की अवधारणा पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसके अनुसार, किसी भी जीवों का एक निश्चित संख्या तक ही उस क्षेत्र में अस्तित्व रह सकता है, जो वहां उपलब्ध संसाधनों पर निर्भर करती है। जब जीवों की संख्या इस सीमा को पार कर जाती है, तो संसाधनों के लिए संघर्ष उत्पन्न होता है। यह संघर्ष जीवन के लिए एक स्थिर स्थिति को जन्म देता है, और अंततः जनसंख्या वृद्धि दर स्थिर हो जाती है।
यदि इसे ग्राफ के रूप में देखें, तो इस वृद्धि दर और समय के बीच के संबंध को “‘S'” आकार के ग्राफ के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, जिसे “‘सिग्मॉइड कर्व'” कहते हैं। यह कर्व यह दर्शाता है कि किस तरह से किसी क्षेत्र में जनसंख्या पहले धीरे-धीरे बढ़ती है, फिर तेजी से बढ़ने के बाद एक बिंदु पर जाकर स्थिर हो जाती है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
भारत में जनसंख्या वृद्धि एक लंबे समय तक धीमी गति से हुई थी। मौर्य काल में, भारत की जनसंख्या 1.5 से 3 करोड़ के बीच अनुमानित थी, जो मुगल काल में बढ़कर 10 से 15 करोड़ हो गई थी। 1901 तक भारत की जनसंख्या 24 करोड़ और 1947 तक यह 35 करोड़ हो गई थी। लेकिन इन 2300 वर्षों में जनसंख्या वृद्धि की गति बहुत धीमी थी, क्योंकि अकाल, महामारियां, युद्ध, और खराब चिकित्सा व्यवस्था इसके प्रमुख कारण थे।
1. अकाल और युद्ध: भारत में अकालों ने जनसंख्या वृद्धि को बाधित किया। ब्रिटिश शासन के दौरान बंगाल का भीषण अकाल (1943) एक उदाहरण है, जिसमें लाखों लोग मारे गए।
2. महामारियां: प्लेग, हैजा, तपेदिक जैसी महामारियों ने भी जनसंख्या को काफी प्रभावित किया।
3. चिकित्सा व्यवस्था की कमी: उस समय खराब चिकित्सा व्यवस्था के कारण शिशु मृत्यु दर और कुल मृत्यु दर बहुत अधिक थी।
4. निरंतर युद्ध: मुगलों और अन्य शासकों द्वारा किए गए युद्धों ने भी जनसंख्या पर प्रतिकूल असर डाला। विशेष रूप से, मुस्लिम शासकों द्वारा किए गए युद्धों में लाखों हिंदू मारे गए थे।
1947 के बाद भारत में जनसंख्या वृद्धि:
स्वतंत्रता के बाद भारत में जनसंख्या वृद्धि की गति बहुत तेज़ हो गई। इसका मुख्य कारण था:
1. लोक कल्याणकारी राज्य: लोकतांत्रिक सरकारों द्वारा कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत।
2. कृषि क्रांति: खाद्य उत्पादन में वृद्धि के कारण अधिक लोगों को भोजन मिलने लगा।
3. चिकित्सा सेवाओं में सुधार: चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता में वृद्धि और उनके विस्तार के कारण मृत्यु दर में भारी कमी आई।
4. औद्योगिकीकरण: औद्योगिक उत्पादन ने रोजगार के अवसरों में वृद्धि की और जीवन स्तर में सुधार किया।
वर्तमान स्थिति और खतरे की घंटी:
आज भारत की जनसंख्या लगभग 1.5 अरब है और यह लगातार बढ़ती जा रही है। “डेली” और “एर्लिच” जैसे प्रमुख इकोलॉजिस्ट्स के अनुसार भारत की ‘carrying capacity’ लगभग 2 अरब के आसपास है। हम इस सीमा के काफी करीब पहुँच चुके हैं, और आने वाले दशकों में यह सीमा पार कर सकता है। इस स्थिति में, जब जनसंख्या ‘carrying capacity’ से अधिक हो जाती है, तो संसाधनों की कमी और संघर्ष बढ़ सकता है।
मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि और सामाजिक तनाव:
भारत में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर अन्य समुदायों की तुलना में अधिक है, जो पारिस्थितिकी और समाजशास्त्र के दृष्टिकोण से एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकता है। लेखक का यह मानना है कि इस जनसंख्या वृद्धि के कारण समाज में तनाव बढ़ सकता है, और यह संघर्ष एक ‘गृह युद्ध’ का रूप ले सकता है। खासतौर पर, मुस्लिम जनसंख्या के विस्तार को लेकर सामाजिक और राजनीतिक असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
पारिस्थितिकी के सिद्धांत और ‘Catastrophe’:
पारिस्थितिकी के सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी क्षेत्र की जनसंख्या ‘carrying capacity’ से अधिक बढ़ जाती है, तो इसके परिणामस्वरूप ‘Catastrophe’ (प्रलय) होगा। यह प्रकृति का नियम है, और इसे टाला नहीं जा सकता।
उत्तरी यूरोप में ‘lemmings'” और भारत में “locusts” (टिड्डियां) के उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि जब किसी जीव की संख्या अत्यधिक बढ़ जाती है, तो यह “‘J Curve'” का निर्माण करता है। यह ‘J Curve’ यह दर्शाता है कि जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ संसाधनों का भारी दबाव बनता है और अंततः प्रकृति का हस्तक्षेप होता है, जो एक विनाशकारी स्थिति को जन्म देता है।
संभावित समाधान:
विज्ञान और तकनीकी उपायों से जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण पाने की कोशिशें की जा सकती हैं, लेकिन कुछ मामलों में जैसे “जल संकट” और संसाधनों की कमी, यह संभव नहीं हो सकता। यदि जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण नहीं पाया जाता, तो यह प्रलय का कारण बन सकता है।
निष्कर्ष:
भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या, विशेषकर जब हम “carrying capacity'” के कगार पर पहुँच चुके हैं, एक गंभीर पारिस्थितिकीय संकट का रूप ले सकती है। पारिस्थितिकी के सिद्धांत के अनुसार, यदि यह वृद्धि जारी रहती है, तो यह संघर्ष और संकट का कारण बनेगा, जिसे रोकना मुश्किल हो सकता है। इसलिए, समाज को इस बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि हम एक स्थिर और समृद्ध भविष्य की ओर बढ़ सकें।
नवीनतम आंकड़े और भविष्यवाणी:
वर्तमान में भारत की जनसंख्या 1.5 अरब के करीब है और यह अगले कुछ दशकों में 2 अरब तक पहुँच सकती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारत की जनसंख्या 2050 तक 1.7 अरब के करीब हो सकती है। ऐसे में यदि “carrying capacity” को बढ़ाने के उपायों की योजना नहीं बनाई जाती, तो पारिस्थितिकी में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
“भारत की ‘carrying capacity'” का मुद्दा एक जटिल पारिस्थितिकीय, सामाजिक और राजनीतिक चुनौती बन चुका है, जिसे समझने और हल करने के लिए एक गंभीर और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।

Author: SPP BHARAT NEWS
