
‘द पायनियर’ में करोड़ों की ‘सेटिंग’? बैंक मीडिया हाउस और प्रॉपर्टी डील का संदिग्ध गठजोड़, जांच की मांग
नोएडा/दिल्ली, 9 अप्रैल: देश के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में शुमार ‘द पायनियर’ इन दिनों एक बड़े वित्तीय विवाद के केंद्र में है। सूत्रों के अनुसार, इस पूरे मामले में एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (पीएसयू बैंक), एक जाने-माने मीडिया समूह और प्रॉपर्टी डीलिंग का एक संदिग्ध गठजोड़ सामने आ रहा है, जिससे करोड़ों रुपये के संभावित घोटाले की बू आ रही है।
विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, ‘द पायनियर’ प्रबंधन ने पहले अपनी नोएडा स्थित बहुमूल्य इमारत को सेंट्रल बैंक में गिरवी रखकर करोड़ों रुपये का भारी कर्ज हासिल किया। अब, अचानक आर्थिक संकट का हवाला देते हुए, मीडिया हाउस बैंक पर एकमुश्त निपटान (One Time Settlement – OTS) के लिए दबाव बना रहा है। इस प्रक्रिया के तहत, कर्ज की पूरी राशि चुकाने के बजाय, एक काफी कम राशि पर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की जा रही है।
संदिग्ध सौदे और उठते सवाल:
इस पूरे प्रकरण में जिस तरह से घटनाक्रम आगे बढ़ा है, उसने वित्तीय अनियमितताओं और संभावित धोखाधड़ी की आशंकाओं को जन्म दिया है। सबसे पहले, यह जानकारी सामने आई है कि ‘द पायनियर’ के प्रमोटरों ने अपने हिंदी प्रकाशन ब्रांड को उत्तर प्रदेश के एक अपेक्षाकृत कम ज्ञात बिल्डर को कथित तौर पर औने-पौने दाम पर बेच दिया। इस सौदे की शर्तों और इसमें हुए वित्तीय लेन-देन की पारदर्शिता को लेकर सवाल उठ रहे हैं। जानकारों का मानना है कि ब्रांड की वास्तविक कीमत कहीं अधिक हो सकती थी।
इसके बाद, मीडिया हाउस अब सेंट्रल बैंक से लिए गए 15 करोड़ रुपये से अधिक के बकाया लोन को मात्र 10 करोड़ रुपये या उससे भी कम में निपटाने की कोशिश कर रहा है। यह स्थिति बैंक के लिए एक बड़ा वित्तीय नुकसान साबित हो सकती है, खासकर तब जब इसी मीडिया हाउस की संपत्ति का बाजार मूल्य वर्तमान में 25 करोड़ रुपये से भी अधिक आंका जा रहा है। सवाल यह उठता है कि यदि कंपनी के पास पर्याप्त संपत्ति है, तो वह बैंक का पूरा कर्ज चुकाने से क्यों कतरा रही है और OTS के माध्यम से भारी छूट क्यों मांग रही है?
नैतिकता और जवाबदेही पर प्रश्नचिह्न:
इस पूरे मामले ने कई गंभीर नैतिक प्रश्न खड़े कर दिए हैं, जिनका जवाब मिलना आवश्यक है। क्या सेंट्रल बैंक, जो कि एक सरकारी संस्था है, पर इस संदिग्ध OTS को स्वीकार करने के लिए किसी प्रकार का राजनीतिक या ऊपरी दबाव डाला जा रहा है? यदि ऐसा है, तो यह न केवल बैंकिंग नियमों का उल्लंघन होगा, बल्कि यह आम करदाताओं के पैसे के साथ भी विश्वासघात होगा।
यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या यह मामला सरकारी धन को निजी लाभ में बदलने की एक सोची-समझी साजिश है। एक तरफ मीडिया हाउस अपनी बहुमूल्य संपत्ति को कम कीमत पर बेच रहा है और दूसरी तरफ बैंक से लिए गए कर्ज पर भारी छूट की मांग कर रहा है। यह स्थिति वित्तीय अनियमितता और संभावित भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर पिछली सरकारों के कार्यकाल में बांटे गए संदिग्ध कर्जों का उल्लेख करते हुए पारदर्शिता और जवाबदेही की बात करते हैं। ऐसे में, उनके शासनकाल में इस प्रकार की संदिग्ध कर्जमाफी को कैसे उचित ठहराया जा सकता है? क्या यह उनकी भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति के विपरीत नहीं है?
जनता के पैसे का क्या होगा?
यह मामला केवल एक मीडिया संस्थान और एक सरकारी बैंक के बीच का वित्तीय लेनदेन नहीं है। इसमें आम जनता का गाढ़ी कमाई का पैसा शामिल है, जो टैक्स और बचत के रूप में बैंकों में जमा होता है। यदि इस तरह के अपारदर्शी और संदिग्ध OTS को मंजूरी दी जाती है, तो बैंक को भारी वित्तीय नुकसान होगा, जिसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। इसके अलावा, यह लोकतंत्र की पारदर्शिता और वित्तीय संस्थानों की विश्वसनीयता के लिए भी एक बड़ा खतरा है। यदि इस तरह के मामले बिना किसी उचित जांच के चुपचाप दबा दिए जाते हैं, तो भविष्य में और कितने ऐसे “सेटिंगबाज़” सरकारी बैंकों को चूना लगाने का दुस्साहस करेंगे?
इस पूरे मामले ने मीडिया जगत और बैंकिंग क्षेत्र में खलबली मचा दी है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या संबंधित नियामक संस्थाएं और जांच एजेंसियां इस संदिग्ध सौदे का संज्ञान लेती हैं और इसकी निष्पक्ष जांच करती हैं। क्या सेंट्रल बैंक प्रबंधन नियमों और पारदर्शिता का पालन करते हुए जनता के पैसे की रक्षा करेगा या फिर किसी दबाव में आकर इस OTS को मंजूरी दे देगा? इस पूरे प्रकरण पर राजनीतिक दलों और नागरिक समाज की भी नजरें टिकी हुई हैं। यह मामला न केवल वित्तीय अनियमितता का है, बल्कि लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों की परीक्षा भी है। आगे की जांच से ही इस पूरे मामले की सच्चाई सामने आ पाएगी।

Author: SPP BHARAT NEWS
