
30 करोड़ का बीमा घोटाला: गंभीर बीमारों को निशाना बनाकर करती थी ठगी, 25 आरोपी गिरफ्तार
उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में पुलिस ने एक बहुस्तरीय फर्जी बीमा गिरोह का पर्दाफाश किया है, जिसने गंभीर रूप से बीमार लोगों की पहचान कर उनके नाम पर बीमा पॉलिसी करवाई और मृत्यु के बाद फर्जी दस्तावेज़ों के ज़रिए बीमा राशि हड़प ली। अब तक 25 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, और गिरोह पिछले दो वर्षों में लगभग “30 करोड़ रुपये” की फर्जी बीमा पॉलिसी से ठगी कर चुका है।
गिरोह का तरीका-ए-वारदात:
– बीमार या वृद्ध लोगों को पहले चिन्हित किया जाता था।
– उनके नाम पर “फर्जी पहचान पत्र, पते, मेडिकल रिपोर्ट और बैंक दस्तावेज़” बनवाकर बीमा कंपनियों से पॉलिसी ली जाती थी।
– मृत्यु के बाद “जाली डेथ सर्टिफिकेट और मृत्यु संबंधी अन्य दस्तावेज” तैयार कर बीमा क्लेम किया जाता था।
– आशा कार्यकर्ता और कुछ बीमा कंपनियों के कर्मचारी भी इसमें शामिल थे, जो मेडिकल वेरिफिकेशन और क्लेम प्रोसेस में सहायता करते थे।
कानूनी पहलू और धाराएं:
इस घोटाले में शामिल आरोपियों पर निम्नलिखित कानूनी धाराएं लगाई जा सकती हैं:
1. भारतीय दंड संहिता (IPC):
– “धारा 420” – धोखाधड़ी और जालसाजी
– “धारा 467, 468, 471” – फर्जी दस्तावेज़ तैयार करना और उनका उपयोग करना
– “धारा 120B” – आपराधिक साजिश
– “धारा 409” – विश्वासघात और संपत्ति की आपराधिक हेराफेरी (विशेष रूप से अगर सरकारी कर्मी शामिल हों)
2. IT Act 2000:
– यदि डिजिटल माध्यम से डेटा या ई-दस्तावेजों में छेड़छाड़ की गई है तो *धारा 66C और 66D* के तहत मुकदमा चल सकता है।
3. बीमा अधिनियम, 1938 (Insurance Act):
– बीमा धोखाधड़ी से संबंधित मामलों में बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) अतिरिक्त जांच कर सकती है। यदि लाइसेंसशुदा बीमा एजेंट इसमें शामिल पाए जाते हैं, तो उनके लाइसेंस रद्द हो सकते हैं।
प्रभाव और जांच की दिशा:
– पुलिस द्वारा जब्त दस्तावेज़ों और मोबाइल डेटा से गिरोह की व्यापकता सामने आई है। नेटवर्क उत्तर प्रदेश से निकलकर दिल्ली, बिहार, राजस्थान जैसे राज्यों तक फैला था।
– एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई और एएसपी अनुकृति शर्मा की अगुवाई में चल रही जांच में “फॉरेंसिक दस्तावेज़ विश्लेषण” और “बैंकिंग ट्रेल” की मदद ली जा रही है।
– आशंका है कि असली रकम “30 करोड़ से कहीं अधिक” हो सकती है और इसमें कुछ राजनीतिक या प्रशासनिक हस्तियों की भूमिका भी हो सकती है।
न्यायिक प्रक्रिया और संभावित सजा:
– यदि आरोप साबित होते हैं, तो मुख्य दोषियों को **10 वर्ष तक की सजा** या उससे अधिक हो सकती है, साथ ही जुर्माना भी।
– जो कर्मचारी या एजेंट पेशेवर दायित्व में लिप्त पाए जाएंगे, उन्हें आजीवन प्रतिबंध या कड़ी प्रशासनिक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
यह घोटाला न केवल आर्थिक अपराध का मामला है, बल्कि यह “नैतिक रूप से भी अत्यंत घृणास्पद” है, क्योंकि इसमें बीमार और मृत्युशैया पर पहुंचे लोगों को ठगी का साधन बनाया गया। यह केस देश में बीमा फ्रॉड की बढ़ती प्रवृत्ति को उजागर करता है और आने वाले समय में बीमा नियामकों को अपनी प्रक्रियाएं और कड़ी करनी होंगी।

Author: SPP BHARAT NEWS
