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समय का मूल्य और जीवन प्रबंधन: युवाओं के लिए एक दार्शनिक दृष्टिकोण

समय का मूल्य और जीवन प्रबंधन: युवाओं के लिए एक दार्शनिक दृष्टिकोण

प्रस्तावना: समय की अपरिहार्यता

समय ब्रह्मांड का मौन संचालक है — जो न दिखाई देता है, न छुआ जा सकता है, परंतु जिसकी उपस्थिति हर क्षण अनुभव होती है।
“कालः कर्षति भूतानि” — समय सभी जीवों को खींच ले जाता है।
जीवन का प्रत्येक पक्ष — जन्म, विकास, उत्थान, पतन और अंत — समय की छाया में ही घटित होता है। युवावस्था में समय की गति और उसका मूल्य समझना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यही वह अवस्था है जिसमें जीवन की दिशा तय होती है।

समय: निर्माण और संहार का साधन

श्रीमद्भगवद्गीता (11.32) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: “कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।” — “मैं काल हूँ, संसार का संहार करने वाला।”

यह श्लोक स्पष्ट करता है कि समय केवल जीवन देने वाला नहीं, बल्कि उसका हरण भी कर सकता है। इसीलिए समय को साधना ही आत्मविकास की साधना है।

युवावस्था: निर्माण की पवित्र प्रयोगशाला

युवावस्था ऊर्जा, आकांक्षा और आत्मविश्वास का संगम है। यह वह कालखंड है जब शरीर में बल, मन में साहस और हृदय में उत्साह प्रचुर होता है।

तुलसीदास जी ने अत्यंत सारगर्भित पंक्तियाँ लिखी हैं: “बड़ भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सदग्रंथन गावा॥”
— मनुष्य शरीर पाना दुर्लभ है, विशेषकर युवा अवस्था इसका स्वर्णकाल है।

इस अवस्था में अगर समय का प्रबंधन सही हो, तो जीवन की कोई भी ऊँचाई दूर नहीं।

जीवन प्रबंधन में समय का स्थान

जीवन प्रबंधन का मूल सिद्धांत यही है कि हम सीमित संसाधनों में — विशेषकर सीमित समय में — अपने लक्ष्यों को कैसे साधते हैं।
आज के युग में जहां हर तरफ आकर्षण, भ्रम और तात्कालिक सुख की लालसा है, वहां अनुशासन और समयबद्धता ही जीवन को स्थायित्व और सफलता दे सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद युवाओं को आह्वान करते हुए कहते हैं: “The greatest sin is to think yourself weak.”
लेकिन यह आत्मबल तभी प्रकट होता है जब हम अपने समय का उपयोग सही दिशा में करते हैं — आत्मविकास, सेवा और साधना में।

धैर्य और निरंतरता: समय के रथ के दो पहिए

समय का सदुपयोग केवल कार्य करने से नहीं होता, बल्कि निरंतर कार्य और धैर्यपूर्ण प्रतीक्षा से होता है।

वेदों में कहा गया है:

“कालाय तस्मै नमः।” — हम समय को प्रणाम करते हैं।
“न हि कालः प्रतिक्रीतः” (महाभारत) — समय को कोई रोक नहीं सकता।

युवाओं को यह समझना चाहिए कि परिणाम तुरंत नहीं मिलते, और अधीरता समय के अपव्यय का कारण बनती है।

साहित्य में समय की चेतना

महादेवी वर्मा लिखती हैं: “जीवन पथ में समय रथ दौड़ता, रुकता नहीं कहीं।”

हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला” में भी समय की गहराई को इस रूप में व्यक्त किया गया: “समय एक पल में ले जाता है, बरसों की साधनाएँ।”

इसलिए साहित्य और दर्शन दोनों हमें सिखाते हैं कि समय का क्षण-क्षण साधना है।

व्यावहारिक सुझाव: युवाओं के लिए समय प्रबंधन के पाँच सूत्र

1. दैनिक लक्ष्य निर्धारण करें — हर दिन के उद्देश्य स्पष्ट हों।
2. प्राथमिकता निर्धारित करें — आवश्यक कार्यों को पहले करें, आकर्षक को नहीं।
3. डिजिटल संयम रखें — सोशल मीडिया समय का सबसे बड़ा अपव्ययक बन चुका है।
4. ध्यान और अध्ययन में संतुलन रखें — मानसिक ऊर्जा का संरक्षण करें।
5. स्व-मूल्यांकन करें — दिन के अंत में आत्मचिंतन करें: “आज समय का कितना सदुपयोग हुआ?”

निष्कर्ष: समय की आराधना ही जीवन की साधना

समय केवल एक भौतिक इकाई नहीं, बल्कि एक दार्शनिक सत्य है। जो समय को समझ गया, वह जीवन को भी समझ गया।

“कालबाधं न यः कुर्यादात्मबुद्धिं स बुद्धिमान्।”
— जो व्यक्ति समय की बाधा में भी आत्मा को पहचानता है, वही वास्तव में बुद्धिमान है।

युवाओं को चाहिए कि वे समय को देवता की भाँति मानें — उसकी पूजा न सही, पर उसकी *अनदेखी* न करें। क्योंकि जो समय के साथ चलता है, वह इतिहास बनाता है। और जो समय की उपेक्षा करता है, वह इतिहास में खो जाता है।

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Author: SPP BHARAT NEWS

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