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संसद का ‘गाइडेड मिसाइल’: निशिकांत दुबे और भारतीय राजनीति में उग्र बयानबाज़ी की राजनीति

संसद का ‘गाइडेड मिसाइल’: निशिकांत दुबे और भारतीय राजनीति में उग्र बयानबाज़ी की राजनीति

 

भारतीय राजनीति में बयानबाज़ी की संस्कृति नई नहीं है, लेकिन कुछ नेता इसे रणनीति के रूप में इस कदर साध लेते हैं कि वह उनकी पहचान बन जाती है। झारखंड के गोड्डा से लगातार चार बार सांसद रहे निशिकांत दुबे ऐसे ही नेताओं की श्रेणी में आते हैं। तीखे, विवादास्पद और सुर्खियों में रहने वाले बयान उनके राजनीतिक स्टाइल का हिस्सा हैं, जो न केवल संसद में बल्कि मीडिया और सोशल मीडिया में भी बहस का केंद्र बनते हैं।

आक्रामकता और वैचारिक उग्रता: एक जानबूझी गई रणनीति?

निशिकांत दुबे के बयान अक्सर बीजेपी की औपचारिक लाइन से आगे निकल जाते हैं, लेकिन यह विचलन स्थायी टकराव नहीं, बल्कि एक प्रकार की “निर्देशित उग्रता” (guided aggression) प्रतीत होती है। कई बार पार्टी उनके बयानों से दूरी बनाती है, लेकिन असर उनके मूल वक्तव्य का ही होता है। यह प्रवृत्ति उन्हें एक ‘गाइडेड मिसाइल’ की तरह प्रस्तुत करती है—जो भले ही पार्टी के नियंत्रण से बाहर दिखे, परंतु रणनीतिक प्रभाव छोड़ने में सक्षम हो।

न्यायपालिका पर कटाक्ष: संवैधानिक संतुलन पर सवाल

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक्फ संशोधन कानून के दो प्रावधानों पर रोक लगाने के बाद दुबे ने कहा कि “अगर देश में कोई धार्मिक युद्ध भड़का रहा है, तो वह सुप्रीम कोर्ट है।” यह टिप्पणी केवल एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि न्यायपालिका जैसी संवैधानिक संस्था पर सीधा हमला मानी गई। उन्होंने सवाल उठाया कि “अगर शीर्ष अदालत को ही कानून बनाना है, तो संसद और विधानसभाएं बंद कर दी जानी चाहिए।” इस बयान पर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने फौरन सफाई दी और इसे उनका निजी विचार बताया, लेकिन तब तक यह चर्चा का विषय बन चुका था।

कैश-फॉर-क्वेरी विवाद: आक्रामकता का राजनीतिक लाभ

2023 में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर नकदी के बदले संसद में प्रश्न पूछने का आरोप लगाकर दुबे ने एक नया राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया। इस आरोप ने महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता समाप्त कराई और बीजेपी को विपक्ष पर नैतिक हमले का अवसर मिला। यह प्रकरण दर्शाता है कि किस तरह से दुबे राजनीतिक हमलों को तथ्यात्मक आरोपों के साथ जोड़कर उन्हें बड़े मुद्दे का रूप दे देते हैं।

सोनिया गांधी, सोरोस और विदेशी फंडिंग के आरोप

दिसंबर 2023 में दुबे ने सोनिया गांधी और राजीव गांधी फाउंडेशन पर जॉर्ज सोरोस से संबंध रखने का आरोप लगाया। उनके अनुसार, इन फंडिंग के तार कश्मीर की स्वतंत्रता का समर्थन करने वाले संगठनों से जुड़े हैं। यह आरोप कांग्रेस पर राष्ट्रविरोधी ताकतों से जुड़ाव की छवि गढ़ने की कोशिश के रूप में देखा गया। हालांकि कांग्रेस ने इसे निराधार बताया, लेकिन राजनीतिक विमर्श में यह मुद्दा केंद्र में आ गया।

ध्रुवीकरण की राजनीति: इस्लामीकरण और धर्म आधारित टिप्पणियां

मार्च 2025 में उन्होंने झारखंड सरकार पर “इस्लामीकरण” का आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य के 648 स्कूल शुक्रवार को बंद रहते हैं। इसे एक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश के रूप में विपक्ष ने खारिज किया। दुबे का यह बयान भी उन्हीं की रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है, जिसमें संवेदनशील मुद्दों को तीखे अंदाज में उठाकर उन्हें राष्ट्रीय बहस का विषय बना देना शामिल है।

विश्लेषण: नायक, खलनायक या रणनीतिक शस्त्र?

निशिकांत दुबे की राजनीतिक शैली पर दो मत हो सकते हैं। एक मत के अनुसार, वे ऐसे निर्भीक नेता हैं जो स्थापित संस्थाओं और राजनीतिक विरोधियों से टकराने का साहस रखते हैं। दूसरा मत उन्हें एक ध्रुवीकरण करने वाले नेता के रूप में देखता है, जिनकी बयानबाज़ी से सामाजिक और राजनीतिक तनाव गहराते हैं। लेकिन इन दोनों धारणाओं के बीच एक साझा तथ्य है—वे चर्चा के केंद्र में रहते हैं, और यह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रभावशाली राजनीतिक अस्त्र है।

भले ही उनके बयानों से पार्टी को कभी-कभी असहज स्थिति का सामना करना पड़ता हो, लेकिन वे बीजेपी की एक ज़रूरत बन चुके हैं—ऐसे नेता की जो विपक्ष पर तीखा हमला कर सके, संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठाने से न डरे और पार्टी के कठोर राजनीतिक विमर्श को आगे बढ़ा सके।

निष्कर्षतः निशिकांत दुबे केवल एक सांसद नहीं, बल्कि बीजेपी की आक्रामक राजनीति का प्रतीक बनते जा रहे हैं। वे नायक हों या खलनायक—इस पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन यह तय है कि वे अब मौन रहने वालों की कतार में नहीं हैं।

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Author: SPP BHARAT NEWS

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