
पत्रकारिता की स्वतंत्रता: लोकतंत्र का आईना या बाजार का मोहरा?
हर साल 3 मई को विश्व पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है, लेकिन क्या इस दिन का महत्व अभी भी बचा है? क्या पत्रकारिता वाकई अपने लोकतांत्रिक दायित्वों को निभा रही है, या फिर यह अब सिर्फ एक व्यवसाय बन चुकी है, जहां तथ्य और सच्चाई बाजार के मापदंडों पर तय होते हैं? आज जब भारत में पत्रकारिता के महत्व और उसकी स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगे हैं, तब यह समय है कि हम इस पर गंभीरता से विचार करें।
पत्रकारिता का वर्तमान संकट: एक दर्पण नहीं, बाजार का आईना
भारत में पत्रकारिता का इतिहास प्राचीन और गौरवमयी रहा है। आज़ादी के संघर्ष में पत्रकारिता ने केवल सत्ता के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि जनता को जोड़ने और जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण कार्य भी किया। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। 1990 के दशक के बाद, जब से भारतीय मीडिया ने व्यवसायीकरण का रास्ता अपनाया, पत्रकारिता ने अपने मूल सिद्धांतों को छोड़कर राजनीति और पूंजीवाद के दबाव में काम करना शुरू कर दिया। मीडिया हाउस अब सच्चाई नहीं, बल्कि अपने मालिकों के राजनीतिक और आर्थिक स्वार्थों के अनुसार खबरें परोसते हैं।
दूसरी ओर, “टीआरपी” और “क्लिकबाइट” की होड़ ने पत्रकारिता को एक मनोरंजन उद्योग बना दिया है, जहां सच्चाई और निष्पक्षता का कोई स्थान नहीं रहा। चैनल्स और पोर्टल्स अब नकारात्मकता और उत्तेजक विषयों की खोज में रहते हैं, जबकि मुख्य मुद्दों और सामाजिक समस्याओं को दबा दिया जाता है। क्या यह पत्रकारिता का उद्देश्य है, या फिर यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका का अपमान नहीं है?
पत्रकारों की स्वतंत्रता: क्या हमें सुरक्षित मीडिया मिल रहा है?
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति एक गंभीर संकट का सामना कर रही है। वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत का स्थान अब भी 160वें के आसपास है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। आज पत्रकारिता केवल सूचना का प्रसार नहीं, बल्कि सत्ता के खिलाफ खड़ा होने का माध्यम बन चुकी है, लेकिन इसके लिए पत्रकारों को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारों को धमकियाँ मिलती रही हैं, उन्हें जेल में डाला गया है और यहां तक कि उन्हें अपनी जान भी गंवानी पड़ी है।
“मुकेश चंद्राकर” जैसे पत्रकारों की हत्याएं, जो सत्ता के भ्रष्टाचार को उजागर करने का प्रयास कर रहे थे, यह दर्शाती हैं कि स्वतंत्र पत्रकारिता कितनी खतरनाक हो गई है। क्या यह सही है कि आज के पत्रकार अपनी जान की सलामती के लिए सत्ता के सामने घुटने टेकने को मजबूर हैं? अगर मीडिया को दबाया जाता है, तो यह लोकतंत्र के लिए एक गहरी क्षति है।
राजनीतिक गठजोड़ और मीडिया की स्वतंत्रता
भारत में मीडिया का स्वामित्व अब कुछ गिने-चुने राजनीतिक और कारोबारी घरानों के हाथों में समाहित हो चुका है। यह स्वामित्व का केंद्रीकरण, न केवल खबरों की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है, बल्कि पत्रकारिता के निष्पक्ष और प्रामाणिक स्वरूप को भी खतरे में डालता है। मीडिया हाउस अब सत्ता और व्यवसायिक दबाव के तहत अपनी खबरें प्रस्तुत करते हैं, और इस प्रक्रिया में सच्चाई और निष्पक्षता का कहीं नाम-ओ-निशान नहीं रहता।
यह राजनीतिक गठबंधन, न केवल मीडिया के उद्देश्य को विकृत कर रहा है, बल्कि समाज में सूचना का संकट भी उत्पन्न कर रहा है। जब पत्रकारिता के साथ यह राजनीतिक और आर्थिक स्वार्थ जुड़ते हैं, तो वह सत्ता के संरक्षण में काम करती है, बजाय इसके कि वह सच्चाई की ओर सवाल उठाए।
डिजिटल युग और सेंसरशिप: एक नया खतरा
डिजिटल मीडिया ने पत्रकारिता को लोकतंत्र की एक नई शक्ति दी है, लेकिन इसके साथ ही यह भी देखा गया है कि सरकारें इंटरनेट शटडाउन, डिजिटल निगरानी और सोशल मीडिया पर नियंत्रण का प्रयास कर रही हैं। 2024 में भारत में दर्जनों बार इंटरनेट बंद किया गया, और यह विश्व में किसी लोकतांत्रिक देश द्वारा इंटरनेट शटडाउन की सबसे बड़ी संख्या थी। यह प्रेस की स्वतंत्रता पर एक सीधा हमला है और नागरिकों के अभिव्यक्ति के अधिकार को कुचलने का प्रयास है।
आखिरकार पत्रकारिता का उद्देश्य क्या रह गया है?
आज के समय में पत्रकारिता के उद्देश्य पर सवाल उठना लाजिमी है। क्या पत्रकारिता का कार्य सत्ता के खिलाफ आवाज उठाना है, या फिर क्या यह केवल एक उपकरण बन गया है, जो पूंजी और राजनीति के खेल को और मजबूत करता है? क्या पत्रकारिता अब केवल टीआरपी बढ़ाने का एक जरिया बन गई है, या फिर क्या यह सच को उजागर करने का माध्यम रह गई है?
हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ, जिसे हमने हमेशा स्वतंत्र और निष्पक्ष माना, आज गहरे संकट में है। अगर यह संकट लगातार बढ़ता रहा, तो हम एक ऐसे समाज में बदल सकते हैं, जहां सच्चाई को दबाया जाएगा और केवल झूठी और उत्तेजक खबरों के माध्यम से समाज को नियंत्रित किया जाएगा।
समाज और पत्रकारिता: एक नई राह की जरूरत
समाज और पत्रकारिता का संबंध बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि पत्रकारिता समाज का दर्पण होती है। जब समाज में गिरावट आती है, तो वह पत्रकारिता में भी दिखाई देती है। इसलिए पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सच्चाई को बनाए रखने के लिए हमें एक नई दिशा की आवश्यकता है। यह केवल सरकार का कर्तव्य नहीं, बल्कि पत्रकारों, मीडिया हाउस और नागरिकों का भी दायित्व है कि वे पत्रकारिता को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष शक्ति बनाए रखें।
निष्कर्ष: पत्रकारिता के भविष्य का संकट
अगर हमें अपने लोकतंत्र को बचाए रखना है, तो पत्रकारिता को स्वतंत्रता, निष्पक्षता और जिम्मेदारी के साथ काम करना होगा। यह केवल सरकार या मीडिया के हितों का मामला नहीं, बल्कि समाज के हर एक नागरिक का मुद्दा है। यदि हम पत्रकारिता की स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करते, तो लोकतंत्र का ढांचा टूट सकता है।
आज, विश्व पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस पर हम इस प्रश्न का उत्तर खोजने के बजाय इसे एक याद दिलाने के रूप में देखें: क्या हम पत्रकारिता को सच बोलने की हिम्मत दे रहे हैं, या फिर हम इसे अपने स्वार्थों के अधीन कर रहे हैं? आज का यह दिवस हमें एक नई दिशा की ओर ले जाए, ताकि हम पत्रकारिता के असली उद्देश्य को फिर से पा सकें।

Author: SPP BHARAT NEWS
