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भारतविरोधियों की असली पीड़ा: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नहीं; राष्ट्र का पुनर्जागरण है!

भारतविरोधियों की असली पीड़ा: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नहीं; राष्ट्र का पुनर्जागरण है!

जब भारत अपनी सुरक्षा के लिए कठोर कदम उठाता है, आतंक के अड्डों पर सटीक प्रहार करता है, और जनमानस “जय हिंद” के नारे से गूंज उठता है — तभी कुछ समूहों में बेचैनी बढ़ जाती है। उन्हें चुभता है यह नवजागरण, यह उभरता हुआ आत्मगौरव।

देश की सेना जब साहस और संयम का परिचय देती है, सरकार जब आतंकवाद के ख़िलाफ़ निर्णायक कार्रवाई करती है, तब इन आलोचकों को यह “सत्तावाद” लगता है। क्या लोकतंत्र में देश के लिए प्रेम दिखाना भी एक विचारधारा का हिस्सा बन गया है? या फिर हर वह कदम जो भारत को मज़बूत करता है, उन्हें संदेहास्पद लगता है?

कुछ समूहों को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे नाम भी अखरते हैं। यह केवल एक शब्द नहीं, भारतीय परंपरा और नारीशक्ति का प्रतीक है। जब इस पर हमला होता है, तो यह सवाल उठता है — क्या यह विरोध किसी सैन्य कार्रवाई का है, या फिर उस संस्कृति का जो भारत की आत्मा है?

सच्चा नारीवाद लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, इंदिरा गांधी या आज की उन बेटियों में है जो सीमा पर, विज्ञान में, प्रशासन में राष्ट्र के लिए संघर्ष कर रही हैं। लेकिन कुछ समूह नारीवाद के नाम पर स्वच्छंदता को ही मुक्ति मानते हैं — संस्कृति से अलगाव, व्यक्तिगत उन्मुक्ति को ही सशक्तिकरण का पैमाना बना लिया गया है।

सवाल यह नहीं कि किसे क्या पहनना या बोलना चाहिए, सवाल यह है कि क्या नारीवाद को राष्ट्रविरोध और सांस्कृतिक तोड़फोड़ का औजार बनाया जा सकता है?

जब भारत पर हमला होता है तो आलोचना केंद्र में सरकार और सेना होती है। और जब भारत जवाब देता है, तब यही स्वर उठता है — “कौन जीता?”, “लाशें दोनों ओर गिरीं।” यह मानवतावाद नहीं, एक प्रकार का बौद्धिक पलायन है, जो हमलावर और रक्षक को एक तराजू में तौलता है।

क्या भारत की सुरक्षा को लेकर हमारी संवेदना इतनी उलझ चुकी है कि हम यह भी तय नहीं कर पा रहे कि दोष किसका है?

लोकतंत्र में असहमति का सम्मान है। लेकिन जब हर सैन्य कार्रवाई, हर सांस्कृतिक प्रतीक, हर राष्ट्रगान या जयकारा केवल आलोचना का विषय बन जाए — तो यह असहमति नहीं, विघटन की भूमिका बनती है।

आज भारत अपनी सांस्कृतिक चेतना, सैन्य संप्रभुता और सामाजिक संरचना के पुनर्निर्माण के दौर में है। यह स्वाभाविक है कि कुछ शक्तियां इससे असहज होंगी। लेकिन यह पुनर्जागरण रुकने वाला नहीं।

विचारों का संघर्ष हो — जरूर हो। लेकिन राष्ट्र के आत्मसम्मान के विरुद्ध नहीं। अब समय है — तर्क और संस्कृति के साथ खड़े होने का, और उन एजेंडाधारी सोचों को बेनकाब करने का जो अभिव्यक्ति की आड़ में राष्ट्र की जड़ों को कमजोर करना चाहते हैं।

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Author: SPP BHARAT NEWS

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