
उत्तर प्रदेश की विद्यालय बंदी नीति: सामाजिक बहिष्कार का खतरा, पुनर्विचार की मांग
लखनऊ, 20 जून 2025: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 27,000 प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने की योजना ने शिक्षा क्षेत्र में तीखी बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता इसे शिक्षा के अधिकार (RTE) का उल्लंघन और सामाजिक बहिष्करण की दिशा में एक खतरनाक कदम बता रहे हैं। यह नीति न केवल ग्रामीण बच्चों की शिक्षा तक पहुंच को सीमित करेगी, बल्कि सामाजिक और आर्थिक असमानता को भी बढ़ाएगी।
सरकारी तर्क और जमीनी हकीकत:
सरकार का दावा है कि कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों को बंद करने से संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और शिक्षा व्यवस्था अधिक प्रभावी बनेगी। लेकिन आंकड़े और जमीनी स्थिति कुछ और कहते हैं:
- ग्रामीण पहुंच: उत्तर प्रदेश में 64% छात्र ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ते हैं, जहां स्कूल की निकटता उनकी शिक्षा का आधार है।
- ड्रॉपआउट का खतरा: ASER 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल की दूरी बढ़ने से ड्रॉपआउट दर 30% तक बढ़ जाती है, खासकर लड़कियों में (UNICEF: 42% लड़कियां 2 किमी से अधिक दूरी पर स्कूल छोड़ देती हैं)।
- सामाजिक प्रभाव: यह नीति गरीब, दलित और पिछड़े समुदायों के बच्चों को शिक्षा से वंचित कर सकती है, जिससे सामाजिक गतिशीलता बाधित होगी।
सामाजिक बहिष्करण का खतरा:
शिक्षाविदों का मानना है कि यह नीति नवउदारवादी दृष्टिकोण को दर्शाती है, जहां शिक्षा को लागत-लाभ के चश्मे से देखा जा रहा है। यह निजीकरण को बढ़ावा दे सकती है, जिससे अभिभावक महंगे निजी स्कूलों या अनौपचारिक शिक्षा की ओर धकेले जाएंगे। इसके मनो-सामाजिक प्रभाव भी गंभीर हैं:
- बच्चों पर असर: स्कूल बंद होने से बच्चों में हीनता की भावना और आत्मविश्वास की कमी पैदा हो सकती है।
- ग्रामीण संरचना: गाँवों में स्कूल सामाजिक संवादwater: * सामुदायिक भागीदारी: केरल मॉडल की तरह कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को सामुदायिक सहयोग से पुनर्जनन केंद्रों के रूप में विकसित करना।
- डिजिटल शिक्षा: ग्रामीण स्कूलों को डिजिटल उपकरणों और मल्टी-ग्रेड टीचिंग के साथ अपग्रेड करना।
- शिक्षक आदान-प्रदान: निकटवर्ती स्कूलों में शिक्षकों की समयबद्ध सेवा।
- ग्राम शिक्षा समितियाँ: सामुदायिक निगरानी तंत्र को सशक्त करना।
RTE का उल्लंघन?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21-A और RTE कानून 2009 के तहत 6-14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। धारा 8 और 9 के अनुसार, सरकार का दायित्व है कि वह शिक्षा तक पहुंच में बाधा न डाले। विशेषज्ञों का कहना है कि विद्यालय बंदी इस प्रावधान की भावना के खिलाफ है।
जनता की मांग: शिक्षा पुनरुत्थान मिशन
सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने सरकार से इस नीति को तत्काल वापस लेने और एक शिक्षा पुनरुत्थान मिशन शुरू करने की मांग की है, जिसमें शामिल हो:
- शिक्षकों की नियमित भर्ती
- ग्रामीण स्कूलों में स्मार्ट क्लास और ICT
- स्वच्छता, पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएँ
- पुस्तकालय और पाठ्येतर गतिविधियाँ
- स्थानीय समुदाय को शिक्षा प्रबंधन में भागीदार बनाना
जनता की राय:
X पर चल रही चर्चाओं में कई यूजर्स ने इस नीति को “शिक्षा विरोधी” और “ग्रामीण भारत के खिलाफ” बताया है। @EduActivistUP ने लिखा, “यह नीति बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। शिक्षा कटौती नहीं, विस्तार चाहिए।”
निष्कर्ष:
उत्तर प्रदेश में शिक्षा सामाजिक समावेशन और आर्थिक न्याय का आधार है। प्राथमिक विद्यालयों को बंद करना एक नीतिगत भूल है, जो लाखों बच्चों के सपनों को तोड़ सकती है। सरकार को चाहिए कि वह संवैधानिक दायित्व निभाए और शिक्षा को सशक्त बनाने के लिए ठोस कदम उठाए।

Author: SPP BHARAT NEWS
