
लोकतंत्र बनाम भ्रष्टाचार: छाया में ढलती आज़ादी
नई दिल्ली, 21 जून 2025: भ्रष्टाचार, जो कभी व्यक्तिगत लालच तक सीमित था, आज एक संस्थागत और रणनीतिक संकट बन चुका है। इसकी जड़ें प्राचीन काल से जुड़ी हैं, लेकिन स्वतंत्र भारत में इसका स्वरूप और प्रभाव लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बन गया है।
प्राचीन जड़ें, आधुनिक रूप :
भ्रष्टाचार की शुरुआत सत्ता और स्वार्थ के गठजोड़ से हुई। महाभारत और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भ्रष्ट अधिकारियों का उल्लेख मिलता है। कौटिल्य ने लिखा, “जैसे मछली पानी पीती है और दिखती नहीं, वैसे ही कर्मचारी चोरी करता है।” मध्यकाल में जमींदारी और कर वसूली में शोषण आम था, जबकि औपनिवेशिक काल में अंग्रेजी शासन ने भ्रष्टाचार को प्रशासन का हिस्सा बना दिया।
स्वतंत्र भारत में भ्रष्टाचार का सफर :
स्वतंत्रता के बाद भारत में ‘लाइसेंस-परमिट राज’ ने आर्थिक भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दिया, जिसने सत्ता और पूंजी के बीच नया गठबंधन रचा।”
1980-90 के दशक में बोफोर्स जैसे घोटालों ने जनता का भरोसा तोड़ा। 1991 के उदारीकरण के बाद भ्रष्टाचार का निजीकरण हुआ। 2G, CWG और कोयला घोटाले इसके उदाहरण हैं। आज भ्रष्टाचार नीतिगत निर्णयों, कॉर्पोरेट-सत्ता गठजोड़ और अपारदर्शी राजनीतिक चंदे, जैसे इलेक्टोरल बॉन्ड्स, के रूप में सामने आ रहा है।
लोकतंत्र पर प्रभाव :
भ्रष्टाचार अब केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल तत्वों को कमजोर करने वाली रणनीति है।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता: आलोचनात्मक न्यायाधीशों को दबाव का सामना करना पड़ता है।
- चुनावों की निष्पक्षता: अपारदर्शी चंदे और एकतरफा मीडिया ने निष्पक्ष चुनावों पर सवाल उठाए हैं।
- नागरिक स्वतंत्रता: आलोचकों को ‘देशद्रोही’ या ‘अर्बन नक्सल’ जैसे टैग देकर चुप कराने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
मीडिया की बदलती भूमिका :
मीडिया, जो कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रहरी था, अब पेड न्यूज और कॉर्पोरेट विज्ञापनों के दम पर सत्ता का प्रचारक बन चुका है। बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों से ध्यान हटाकर धर्म और राष्ट्रवाद को केंद्र में लाया जा रहा है। चुनिंदा रिपोर्टिंग और ट्रोलिंग ने जनता में भ्रष्टाचार के प्रति असंवेदनशीलता पैदा की है।
आगे की राह :
भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कानून पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए लोकतांत्रिक पुनर्जागरण जरूरी है। जनता को नीति निर्माण, चुनावी प्रक्रिया और मीडिया पर सक्रिय निगरानी रखनी होगी। स्वत EDIT: स्वतंत्र पत्रकारिता और जन आंदोलन इस जंग में अहम हथियार हैं।
निष्कर्ष :
भ्रष्टाचार अब केवल एक आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है। यदि इसे अनदेखा किया गया, तो हम एक ऐसे नियंत्रित जनतंत्र की ओर बढ़ेंगे जहाँ सब कुछ वैध लगेगा, लेकिन स्वतंत्रता केवल एक भ्रम बनकर रह जाएगी। अब वक्त है कि नागरिक जागरूक हों, सवाल पूछें, और लोकतंत्र को बचाने के लिए निडर होकर सामने आएं।

Author: SPP BHARAT NEWS
