
अंधकार से ज्योति की ओर: आशा का सनातन और सार्वभौमिक संदेश
मानव जीवन केवल संघर्षों और चुनौतियों से भरी यात्रा नहीं है, बल्कि यह निरंतर परिवर्तन और पुनर्जन्म की कहानी भी है। जब कोई कहता है कि “अब कुछ नहीं हो सकता”, तो वास्तव में वह अपने भीतर की हार स्वीकार कर लेता है। किंतु इतिहास गवाह है—निराशा कभी अंतिम सत्य नहीं होती।
अंधकार चाहे जितना भी गहन हो, सुबह का सूरज उससे कहीं अधिक प्रबल होता है। यही प्रकाश ही आशा का प्रतीक है।
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🌼 वेद और उपनिषद का अमर संदेश
उपनिषद् की प्रार्थना—
“असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।”
अर्थात्—हे प्रभु! हमें असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।
यह केवल श्लोक नहीं, बल्कि मानवता की सनातन यात्रा का उद्घोष है। निराशा अंधकार है और आशा ही वह ज्योति है जो जीवन को अमर बनाती है।
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⚔️ भगवद्गीता की प्रेरणा
गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को स्मरण कराते हैं—
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।”
अर्थात्—मनुष्य को स्वयं अपने मन को ऊँचा उठाना चाहिए और निराशा में डूबने से बचना चाहिए।
गीता का यह संदेश है—कर्म ही धर्म है, और कर्म करते हुए आशा सदैव जीवित रहती है।
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✝️ बाइबिल का आलोक
यीशु मसीह कहते हैं—
“तुम संसार की ज्योति हो। पहाड़ पर बसा हुआ नगर छिप नहीं सकता।” (मत्ती 5:14)
यह हमें स्मरण कराता है कि हर मनुष्य अपने भीतर एक प्रकाश है। जब यह दीपक प्रज्वलित होता है तो समाज और राष्ट्र भी प्रकाशित होते हैं।
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☪️ कुरआन की शिक्षा
कुरआन शरीफ़ कहता है—
“निस्संदेह कठिनाई के साथ आसानी है। वास्तव में कठिनाई के साथ आसानी है।” (सूरह अश-शरह 94:5-6)
यह हमें सिखाता है कि कठिनाई स्थायी नहीं होती। हर रात के बाद सवेरा आता है, हर संकट के बाद राहत मिलती है। यही इस्लाम का आशावादी संदेश है।
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🛕 गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश
गुरु नानक का उपदेश—
“ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਚੜ੍ਹਦੀ ਕਲਾ, ਤੇਰੇ ਭਾਣੇ ਸਰਬੱਤ ਦਾ ਭਲਾ।”
अर्थात्—सत्य और स्मरण के सहारे आत्मा उन्नत होती है और वह केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज की भलाई की कामना करता है। यही सामूहिक आशा का स्वर है।
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🪔 बौद्ध दृष्टिकोण
गौतम बुद्ध का अमर संदेश—
“अप्प दीपो भव” अर्थात् “स्वयं दीपक बनो।”
बुद्ध बताते हैं कि आशा बाहर से नहीं आती, वह हमारे भीतर ही जन्म लेती है। जब हम खुद प्रकाशमान होते हैं तो अंधकार स्वतः मिट जाता है।
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🌍 सार्वभौमिक सत्य
हर धर्म, हर शास्त्र और हर युग यही कहता है—
👉 निराशा कभी अंतिम नहीं होती।
👉 अंधकार कितना भी प्रबल क्यों न हो, एक किरण उसे भेद सकती है।
👉 समाज और राष्ट्र की दिशा निराशावाद से नहीं, बल्कि विश्वास, करुणा और कर्म से बदलती है।
निराशा के दस स्वर उठें तो भी आशा के बीस गीत गूँजेंगे।
यही सनातन नियम है, यही मानवता का धर्म है और यही जीवन का शाश्वत संदेश है।

Author: SPP BHARAT NEWS
