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???? महर्षि वाल्मीकि : भारतीय आदर्शों के आदि विधाता और संस्कृत के आदिकवि ????

???? महर्षि वाल्मीकि : भारतीय आदर्शों के आदि विधाता और संस्कृत के आदिकवि ????

भारतभूमि सदा से ऋषियों, मुनियों और महापुरुषों की तपोभूमि रही है। इन्हीं में से एक हैं – महर्षि वाल्मीकि, जिनके ज्ञान, तप और साहित्यिक प्रतिभा ने सम्पूर्ण मानवजाति को धर्म, सत्य और मर्यादा का अमर संदेश दिया।
महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत के आदिकवि और रामायण के रचयिता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारतीय संस्कृति के उन मूल्यों को शब्द रूप दिया, जो आज भी समाज के नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का आधार हैं।

????️ महर्षि वाल्मीकि का परिचय

वाल्मीकि जी का उल्लेख उत्तरकाण्ड के ९६वें सर्ग के १९वें श्लोक में मिलता है, जहाँ वे स्वयं अपना परिचय देते हैं —

> “प्राचेतसोऽहं दशमः पुत्रो राघवनन्दन।
न स्मराम्यनृतं वाक्यमिमौ तु तव पुत्रकौ।। ”

 

अर्थात — हे राघवनन्दन! मैं प्रचेता (वरुण) का दसवाँ पुत्र हूँ, और मेरे मुख से कभी असत्य वचन नहीं निकला।
इस प्रकार वाल्मीकि को प्रचेता का पुत्र माना गया है।

✨ काव्य का प्रथम उद्गम – करुणा से कविता तक

महर्षि वाल्मीकि केवल एक ऋषि ही नहीं, बल्कि मानव संवेदना के साक्षात् प्रतीक थे। एक बार उन्होंने देखा कि क्रौंच पक्षियों का जोड़ा मैथुन में लीन था, तभी एक शिकारी ने उनमें से एक को तीर से मार दिया। उस दृश्य से द्रवित होकर उनके मुख से स्वयमेव यह श्लोक निकला —

> “मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम्।। ”

 

अर्थ — हे निषाद! तू कभी शांति न पाए, क्योंकि तूने बिना अपराध के प्रेम-मग्न क्रौंच जोड़े में से एक की हत्या की है।

यही श्लोक विश्व की प्रथम कविता बना। इसी क्षण काव्य का जन्म हुआ और वाल्मीकि आदिकवि कहलाए।

???? रामायण – विश्व का प्रथम महाकाव्य

महर्षि वाल्मीकि ने इसी छन्द-शैली में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन पर आधारित महान ग्रंथ ‘रामायण’ की रचना की, जिसे वाल्मीकि रामायण कहा जाता है। यह केवल एक कथा नहीं, बल्कि मानव जीवन के आदर्शों का शास्त्र है।
रामायण हमें सिखाती है —

मर्यादा और संयम का पालन कैसे करें,

परिवार और समाज में कर्तव्य का निर्वाह कैसे हो,

शक्ति का उपयोग सदैव धर्म के लिए होना चाहिए।

 

???? राम के आदर्श और भारतीय जीवन पर प्रभाव

श्रीराम यद्यपि भगवान विष्णु के अवतार थे, फिर भी उन्होंने सदैव मर्यादा और मानव धर्म का पालन किया। यही कारण है कि राम का चरित्र भारतीय संस्कृति का आधार बन गया।
वाल्मीकि के राम के आदर्शों ने भारतीय समाज को ऐसा रूप दिया, जहाँ सत्य, करुणा और धर्म जीवन का अंग बन गए।

???? वाल्मीकि से तुलसी तक – रामकथा की अमर परंपरा

संत तुलसीदास ने वाल्मीकि रामायण के आधार पर ही “रामचरितमानस” की रचना की।
कई विद्वानों का मत है कि संत तुलसीदास स्वयं महर्षि वाल्मीकि के पुनर्जन्म थे, जिन्होंने पुनः भारत को राममय बना दिया।

???? महर्षि वाल्मीकि की विरासत

महर्षि वाल्मीकि के बिना भारतीय साहित्य, संस्कृति और धर्म की कल्पना अधूरी है। उन्होंने न केवल एक महान ग्रंथ लिखा, बल्कि मानवता के लिए आदर्श जीवन का मार्गदर्शन भी किया।
उनकी वाणी आज भी प्रेरणा देती है कि —

> “सत्य बोलो, मर्यादा में रहो और धर्म के मार्ग पर अडिग रहो।”

 

???? महर्षि वाल्मीकि जयंती पर

आज जब हम महर्षि वाल्मीकि की जयंती मना रहे हैं, तो यह अवसर है —
उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का,
सत्य, करुणा और धर्म की उस ज्योति को पुनः प्रज्वलित करने का,
जो युगों-युगों तक मानवता का पथ आलोकित करती रहेगी।

कोटिशः नमन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि को।
✍️ – नवीन चन्द्र प्रसाद

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Author: SPP BHARAT NEWS

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