अंतर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
नर्सिंग: सेवा, समर्पण और सशक्तिकरण की जीवंत मिसाल
किसी भी अस्पताल में प्रवेश करते ही जो सबसे पहले आत्मा को छूता है, वह होता है एक नर्स का सौम्य चेहरा, श्वेत वस्त्र, और उसकी सेवा की गूंजती हुई खामोशी। नर्सिंग, चिकित्सा क्षेत्र का वह स्तंभ है, जिस पर मरीज की आशा, विश्वास और उपचार की प्रक्रिया टिकी होती है। यह केवल एक पेशा नहीं, बल्कि सेवा, समर्पण और सशक्तिकरण का संगम है – एक ऐसा दायित्व, जिसे निभाने के लिए आत्मबल, करुणा और निरंतर सजगता की आवश्यकता होती है।
इतिहास की बात करें तो फ्लोरेंस नाइटिंगेल का नाम नर्सिंग की पहचान बन चुका है। एक संपन्न परिवार से आई उस महिला ने युद्ध के मैदान में घायल सैनिकों के बीच सेवा को जीवन का उद्देश्य बना लिया। ‘लेडी विद द लैम्प’ के रूप में जानी जाने वाली नाइटिंगेल ने नर्सिंग को महज एक सेवा नहीं, बल्कि एक विज्ञान, एक सम्मानित पेशा बनाया। आज जब हर साल 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है, तो वह केवल एक तारीख नहीं होती – वह होती है उस निस्वार्थ सेवा को सम्मान देने की घड़ी, जो दुनिया की हर नर्स अपने जीवन में जीती है।
समाज में नर्सिंग का महत्व केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं है। यह महिलाओं के सशक्तिकरण की भी प्रतीक बन चुकी है। जब युवा लड़कियां नर्सिंग को केवल रोजगार नहीं, बल्कि समाज सेवा और आत्मनिर्भरता के माध्यम के रूप में अपनाती हैं, तब वे अपने साथ-साथ समाज को भी जागरूक बनाती हैं। आज भारत की नर्सें – विशेषकर केरल, पंजाब और पूर्वोत्तर राज्यों की महिलाएं – देश ही नहीं, विदेशों में भी अपनी कार्यकुशलता, समर्पण और करुणा से पहचान बना रही हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अक्सर इस पेशे के श्रम को वह सामाजिक मान्यता नहीं मिलती जिसकी यह हकदार है। लंबे समय तक खड़े रहना, रातों की नींद छोड़ना, मानसिक व भावनात्मक दबाव को सहते हुए मुस्कुराना – यह सब किसी नर्स के दैनिक जीवन का हिस्सा है। डॉक्टर जहां निदान करते हैं, वहीं नर्सें उपचार को जीवंत बनाती हैं – दवाएं समय पर देना, घावों की देखभाल, और मरीज के मन में आशा का संचार करना, यह उनकी दिनचर्या है।
कोविड-19 महामारी के दौरान नर्सों ने जो अदम्य साहस और त्याग का प्रदर्शन किया, वह केवल मेडिकल इतिहास में ही नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने अपने परिवार से दूर रहकर, संक्रमण के खतरे के बीच, हज़ारों जानें बचाईं।
आज जब हम नारी सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो यह आवश्यक है कि हम नर्सिंग जैसे पेशों को केंद्र में रखें – क्योंकि यह पेशा महिलाओं को केवल रोजगार नहीं, बल्कि सामाजिक पहचान, आत्मगौरव और नेतृत्व की भूमिका प्रदान करता है।
सरकारों, समाज और मीडिया की ज़िम्मेदारी है कि वे इस वर्ग की चुनौतियों को समझें और नर्सिंग को स्वास्थ्य व्यवस्था का एक सशक्त स्तंभ मानकर, उनके लिए बेहतर प्रशिक्षण, सम्मानजनक वेतन, और मानसिक-सामाजिक सहयोग की व्यवस्था करें।
समाज का असली चेहरा वही होता है, जो अपने सबसे निःस्वार्थ कर्मियों को पहचान और सम्मान देता है। नर्सें इसी श्रेणी की नायिकाएं हैं – मौन में मुस्कुराती, पीड़ा में संबल बनती, और जीवन की आखिरी उम्मीद का नाम।
शत-शत नमन उन ‘सिस्टर्स’ को, जिनकी सेवा, समर्पण और शक्ति से जीवन मुस्कुराता है।

Author: SPP BHARAT NEWS






