
धर्म और विज्ञान: विरोध नहीं, समन्वय ही समाधान
मानव सभ्यता की सबसे बड़ी खोजें दो ध्रुवों पर टिकी रही हैं—
विज्ञान, जो जानने की तृष्णा से प्रेरित है,
और धर्म, जो मानने की आस्था से जन्म लेता है।
इन्हीं दोनों की स्वाभाविक प्रवृत्ति ने उन्हें कभी विरोधी बना दिया। विज्ञान ने कहा—”मैं प्रमाण चाहता हूँ”, धर्म ने कहा—”मैं अनुभव में विश्वास करता हूँ”.
पर क्या ही अद्भुत होता यदि विज्ञान थोड़ा मान लेता और धर्म थोड़ा जान लेता।
दरअसल, रहस्य खोजने की सबसे बड़ी शक्ति है—जिज्ञासा। धर्म और विज्ञान दोनों स्वीकार करते हैं कि जिज्ञासा के बिना सत्य की प्राप्ति असंभव है। किंतु दोनों के समन्वय की कमी ने खोज को धीमा कर दिया। यदि यह तालमेल हो तो परिणाम और भी गहन, तीव्र और सटीक होंगे।
🔹 धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है।
🔹 विज्ञान के बिना धर्म अंधा है।
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गॉड पार्टिकल और शून्य का रहस्य
जब वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड के रहस्यों को सुलझाने का प्रयास किया, तो परिणाम का नाम उन्होंने हिग्स बोसोन ही नहीं रखा, बल्कि उसे “गॉड पार्टिकल” भी कहा।
यानी विज्ञान भी कहीं न कहीं अदृश्य सत्ता की स्वीकारोक्ति करता है।
शून्य को आधार मानकर गणितीय और भौतिकीय गणनाएँ होती हैं।
सोचिए, यदि आधार शून्य न हो तो अनंत की यात्रा कहाँ से प्रारंभ होगी?
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उपनिषद् का अद्भुत गणित
ईशावास्योपनिषद् का शांति मंत्र कहता है—
“पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।“
यह मंत्र केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि गहन गणितीय सूत्र भी है।
यह हमें सिखाता है—
यह भी पूर्ण है, वह भी पूर्ण है।
पूर्ण से पूर्ण की उत्पत्ति होती है, तो भी पूर्ण ही शेष रहता है।
गणित के शून्य और अनंत की यही परिभाषा है—
शून्य से शून्य जोड़ो या घटाओ, परिणाम शून्य ही रहता है।
अनंत में से कुछ भी घटाओ, वह अनंत ही रहता है।
यानी धर्म की भाषा और विज्ञान की भाषा – दोनों अंततः एक ही सत्य की ओर इशारा करते हैं।
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निष्कर्ष
विज्ञान और धर्म का संघर्ष केवल मानवीय अहं का परिणाम है।
वास्तविकता यह है कि—
👉 विज्ञान बिना धर्म अधूरा है।
👉 धर्म बिना विज्ञान असंपूर्ण है।
सच्चा ज्ञान तब ही संभव है जब दोनों हाथ मिलाकर ब्रह्माण्ड के रहस्यों को समझने की दिशा में आगे बढ़ें।

Author: SPP BHARAT NEWS
