जीवित्पुत्रिका व्रत 2025 : महत्व, कथा और परंपरा
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत जिसे “जितिया” पर्व भी कहा जाता है, मुख्यतः बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। इस व्रत में माताएँ अपनी संतान की लंबी आयु, निरोगी जीवन और खुशहाली के लिए निर्जला उपवास रखती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा
महाभारत युद्ध के बाद, द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों से बदला लेने की ठानी। एक रात वह पांडवों के शिविर में घुसा और सोते हुए पाँच लोगों की हत्या कर दी। उसे लगा कि वे पांडव हैं, लेकिन वे वास्तव में द्रौपदी के पाँच पुत्र थे।
अर्जुन ने क्रोधित होकर अश्वत्थामा को पकड़ लिया और भीम ने उसके मस्तक की मणि निकाल ली। प्रतिशोध में अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया।
सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गर्भ में मृत शिशु को पुनः जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उसका नाम “जीवित्पुत्रिका” पड़ा। वही आगे चलकर राजा परीक्षित बने। तभी से इस व्रत की परंपरा आरंभ हुई।
जीवित्पुत्रिका व्रत की परंपराएँ
माताएँ यह व्रत संतान की सुख-समृद्धि और लंबी आयु के लिए करती हैं।
इस दिन व्रती मड़ुआ की रोटी, नौनी साग और सतपुतिया की सब्जी का सेवन करती हैं।
कुछ क्षेत्रों में मछली खाने की भी परंपरा जुड़ी हुई है।
इन खाद्य पदार्थों को ग्रहण करने से संतान की दीर्घायु होने की मान्यता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत की शुभकामनाएँ
सभी माताओं को जीवित्पुत्रिका व्रत (जितिया पर्व) की हार्दिक शुभकामनाएँ। यह पर्व आपके बच्चों के जीवन में खुशहाली, दीर्घायु और सुख-समृद्धि लेकर आए।
Author: SPP BHARAT NEWS






